
आज के भारत की माँग
‘परमेश्वरस्य प्रीतये ॠषिदेवपितृसंवर्धनाय
सर्वभूतमंगलाय जगत्कल्याणाय राष्ट्रसंस्कृतिप्रसाराय च
संकल्पसिध्दि शुभवासनाय |’
-आदर्श शिक्षा द्वारा अपने बालकों में पूरी शक्ति लाकर नैतिक, बौध्दिक और आध्यात्मिक देन द्वारा विश्व की, मानवता की और जड़वादग्रस्त जनता की सेवा न की तो उसका स्वतन्त्र होना नितान्त निरर्थक है |
भगवान से प्रार्थना है कि स्वतन्त्र भारत ओ सच्चे रूप में प्रबुध्दकर उसे भारतीय संस्कृति से ओतप्रोत कर दें कि जिससे वह अपनी लोकोपकारी शिक्षाद्वारा विश्वका नैतिक नेतृत्व ग्रहण कर ‘सभ्यता’ और ‘मानवता’ की रक्षा करने में समर्थ हो सके |